s Swami Keshwanand Samiti Charitable Trust

सांप्रदायिक सदभाव

सच्चा साधु होने के नाते स्वामी जी किसी सम्प्रदाय विशेष से न जुड़कर मानव-मात्र के कल्याण के लिए कार्यरत थे। उन्होंने ‘‘जाट विद्यालय’’ का नाम बदलकर ‘‘ग्रामोत्थान विद्यापीठ’’ रखवाया। उनकी संस्थाओं में सभी जातियों के छात्र बिना भेद-भाव, किसी प्रकार की छूआ-छूत न मानते हुए, शिक्षा ग्रहण करते थे। छात्रावासों में भी वे साथ-साथ रहते और एक ही भोजनालय में भोजन करते थे। हरिजन छात्रों को सन् 1952 से भोजन व्यय के लिए छात्रवृति मिलने लगी थी। सन् 1954 में यह सरकारी नियम बन गया कि अनुसूचित जाति के छात्रों को छात्रवृति तभी दी जावेगी, जब उन्हें अलग छात्रावास में रखा जावेगा। स्वामी जी ने इस नियम का सरकार से विरोध किया कि इस प्रकार तो सरकार छूआ-छूत को मिटाने की बजाय बढ़ावा दे रही है, परन्तु उक्त नियम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उन छात्रों के हित को देखते हुए स्वामी जी ने ‘‘सरस्वती आश्रम’’ नाम का भवन अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए दे दिया। उदासी साधु होने के नाते अपने गुरु-ऋण से मुक्त होने के लिए उन्होंने सिख गुरुओं की कल्याणमयी वाणी और सिखों के शौर्य और बलिदान की कहानी हिन्दी-भाषी समाज तक पहुंचाने के उद्देश्य से हिन्दी में एक 700 पृष्ठों के वृहद् सिख इतिहास को जाट इतिहास के सुविख्यात लेखक ठाकुर देशराज से लिखवाकर प्रकाशित कराया। उन्होंने बिश्नोई मत के प्रवर्तक गुरू जम्भेश्वर जी की जीवनी, महर्षि सुकरात, मार्टिन लूथर, महात्मा मेजिनी और महात्मा शेखसादी की जीवनियाँ भी प्रकाशित कराईं। स्वामी जी के निमंत्रण पर नामधारी सिखों के गुरु जगजीत सिॅंह, जैन मुनि आचार्य तुलसी, जगन्नाथ पुरी के शंकराचार्य, राजस्थान के मुख्यमंत्री बरकतुल्ला खां और हरिजनों के मसीहा बाबू जगजीवनराम समय-समय पर ग्रामोत्थान विद्यापीठ में पधारे। वास्तव में स्वामी केशवानन्द साम्प्रदायिक सद्भाव की जीती जागती तस्वीर थे।